शनिवार, 20 अगस्त 2022

अभिव्यक्ति की आजादी

 


अभिव्यक्ति की आजादी
पर ताला लगा हुआ है।
अन्यथा मैं यह कहता
कि क्या जातिवाद ?
खत्म हो गया है।
अपनी ही जाति को
रेवड़ियां बटनी बंद हो गई हैं।
क्योंकि तुम्हारी जाति,
जातिवाद से बाहर है।
जातियों की संरचना करते वक्त
तुम्हें या तुमने अपने को !
सर्वोच्च बता दिया था।
और अपनी जाति के लिए,
गलती न करने का प्रमाण पत्र
दे दिया था।
और यही कारण है कि
जनता यह मान करके 
बैठ गई थी कि यह सर्वोच्च हैं
जातियों में जो गलती नहीं करते।
सारे समाज का प्रसाद ले लेते हैं
और जूठन भी औरों को,
बहुत अपमानजनक तरीके से,
घृणित और अपमानित करके
पत्तलों को उठवा करके,
उस पर बचे हुए अन्न को,
पशु और जानवरों से बचने पर
उन्हें प्रसाद के रूप में देते हैं।
कुत्ते आदि के जूठन को।
जूठन नहीं मानते।
धूल पोंछकर पवित्र कर लेते हैं।
लेकिन अपने द्वारा बनाई हुई
जातियों को छूना भी 
वर्जित कर रखा है।
पवित्रता का पैमाना मानते हैं।
गैर बराबरी और ऊंच नीच
का बाजार हजारों साल से
सजा हुआ है मनुष्य के रूप में
हजारों जातियां स्वउपयोग के लिए,
बहुत चालाकी से गढ़ा हुआ है।
अभिव्यक्ति की आजादी
पर ताला लगा हुआ है।
अन्यथा मैं यह कहता
कि क्या जातिवाद ?
खत्म हो गया है।

-डॉ लाल रत्नाकर

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