निराला रुप है उसका
जहां मुस्कान गायब है।
दिमागी रूप से उसका
गजब का रंग फैला है।
सभी धरती है उसकी,
यही उसको बताया है।
ना ही मुकम्मल ज्ञान।
ना ही मानवीय मंशा।
विषैला माहौल जबसे,
जुमलों से बनाया है।
इसे शोहरत कहो या,
कहो भक्तों की भक्ति।
यही तो रंग डाला है।
उसी में भंग डाला है।
यही क्या पौधशाला है।
चमन को रौंद डाला है।
-डॉ लाल रत्नाकर
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