पालतू बनना बनाना दोष है
फिर छोड़ दें सबको मोड़ पे।
लूटें और खुशहाली का करें,
नाटक और नौटंकी बखूबी।
भूख का भ्रमपाल कर बांटे,
खैरात औ दुशाला ओढ़कर।
कुत्तों की तरह दुम हिलाना,
छोड़कर सोचो जरा इंसान हो।
बुद्धि का खजाना छोड़कर,
जुमलों पर जान लुटाना छोड़ दें।
कह रहे हो क्या समझ में आ रहा
राष्ट्रभक्ति में नाचना गाना,
सब को बेवकूफ बनाना छोड़ दें।
पेट भरने के लिए खैरात में जो
मिल रहा है उसको खाना छोड़ दें
व्यापार करना मुझको आता नहीं
घर चलाना कैसे अब हम छोड़ दें
आजादी का जश्न मनाना छोड़ दें
- डॉ लाल रत्नाकर
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