उम्मीद की खिड़कियां
जब बंद हो।
मन में फैला द्वंद हो,
न्याय और अन्याय का,
मूर्ख के व्यापार का,
विचार और दुराचार का
मन में भरा जब द्वंद हो
सत्य पर प्रतिबंध हो।
झूठ का सजा मंच हो
चालबाजी का सम्मेलन हो
झूठ की अध्यक्षता हो
वक्ता वहां लंपट हों
कोई न वहां संकट हो।
फिर ट्रस्ट हो या भ्रष्ट हो।
प्रश्न किस से पूछना है।
और किसको सूचना है।
मन के तेरे मंथन का।
धन के प्रबंधन का।
कुटील आचार हो
दिखावटी विचार हो।
उम्मीद की खिड़कियां
जब बंद हो।
मन में फैला द्वंद हो।
- डॉ लाल रत्नाकर
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