हजारों साल से
झूठ और फरेब का
महातांडव चलता आया है
स्त्री शूद्र बहुजन व विधर्मी
कभी एक साथ कभी अलग अलग।
पिसता आया है ?
मगर कभी वह एक साथ
खड़ा होकर दुश्मन के सामने
अभी तक तो नहीं आया है।
हजारों समाज सुधारकों ने
समय-समय पर उसे जगाया है
न जाने क्यों इतनी गहरी नींद में
अखंड पाखंड के नशे से
बेहोशी की हालत में सो रहा है।
इससे भी आगे वह लठैत बनकर
अज्ञानता के अंधकार का
बोझ उठाकर चलता आया है।
ऐसे समाज को बहकाने वाला,
जानता है उसकी मजबूरियां।
ठगता है उसे झांसा देकर।
बनाता है अपराधी दुराचारी।
फिर और फिर गुमराह करता है
जुमले सुनाकर प्रतिज्ञा दिलाकर
नफरत के नासूर का भाव भरकर
फिर कर देता है घाव को ताजा।
बना रहता है लोकतंत्र में राजा।
भेड़ की तरह बिखरा हुआ बहुजन।
प्रतिबद्ध होकर चला जाता है
अज्ञानता के अंधकार लोक में
उस आस्था के गोद में,
जहां से उसे छला जाता है।
हजारों साल से
झूठ और फरेब का
महातांडव चलता आया है
स्त्री शूद्र बहुजन व विधर्मी
कभी एक साथ कभी अलग अलग।
पिसता रहा है।
- डॉ लाल रत्नाकर
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