रविवार, 23 अक्टूबर 2022

पाखंडियों के बुद्धि विलास और आप दंभ से।



हजारों साल से
परिवर्तन का दौर चल रहा है
परंतु पाखंड पिछा क्यों नहीं छोड़ रहा है।
पाखंड परोसने वाले भी साथ साथ चल रहे हैं।
क्योंकि उनका जीवन पाखंड से चल रहा है।
सत्य के सिपाही बार-बार हार जाते हैं।
जीती हुई लड़ाई छोड़ जाते हैं।
आपस के तंत्र से।
पाखंडियों के बुद्धि विलास और आप दंभ से।
व्यापारियों का मेल और पाखंड का खेल।
क्यों नहीं बदलता जबकि दुनिया बदल गई है।
बैलगाड़ी से वायुयान पर आ गई है।
जनता मुफ्त का भोजन पा रही है।
फिर भी दिमाग ठिकाने नहीं लगा रही है।
क्योंकि उसके दिमाग को कैद कर लिया गया है।
पाखंड के हथियार से अंधविश्वास के बाजार से।
जो ऑनलाइन भी चल रहा है।
जुमलों के अत्याचार से परंपराओं का डर दिखाकर।
अन्याय के शिकंजे से मरने मारने के डर से।
अंधविश्वास का धुआं कर दिया गया है उसकी बुद्धि में ।
अज्ञान का समंदर प्रवाहित कर दिया गया है।
नहीं पढ़ता वह ज्योतिबा फुले को।
नहीं मानता सावित्रीबाई फुले को।
पेरियार का तर्क उसकी समझ में नहीं आता।
कबीर चिल्ला चिल्ला कर कहते हैं।
उनकी बात नहीं सुनता।

- डॉ लाल रत्नाकर


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