यह नफरत का दौर है
इंसानियत पशुवत हो गई है
पहचान का आधार प्रतीक हो गया है
धर्म अधर्म के हाथ बिक गया है।
स्वर्ग नरक का सुहावना प्रलोभन
और आश्वासन विषैला और जहरीला
वातावरण बन गया है।
इसको भले कोई प्रदूषण कहिए
यह मूलतः नफरत के हाथ चढ़ गया है।
तभी तो यह नफरत का दौर है।
और मोहब्बत कराह रही है।
इंसानियत के बदले
हैवानियत का बोलबाला है।
हर व्यक्ति के पास नफरत का निवाला है।
यह नफरत का दौर है।
-डॉ लाल रत्नाकर

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