मंगलवार, 15 नवंबर 2022

तुम्हारी नफरत ?



तुम्हारी नफरत ?
तुम्हारे चेहरे से झलक रही है
यह तो साफ साफ दिखाई दे रहा है।
तुम्हारी आंखें तुम्हारा सच कह रही हैं।
फिर भी तुम अपने को संत बता रहे हो !
कितने लोगों को मारोगे।
आईएएस आईपीएस अफसर,
जज और वकील, चश्मदीद गवाहों को।
नेताओं और मंत्रियों को।
अपने विरोधियों को।
तुम्हारी नफरत के हर अंदाज।
नजर आ रहे हैं।
देश बर्बाद करने का तुम्हारा विचार।
यह सब कितना शातिराना है।
तुम धर्म की बात करते हो।
किस धर्म की?
जो अपराध की नींव पर खड़ा है।
या उस धर्म की जो मानवता परोसता है।
बौद्ध,जैन,सिख,कबीर के बंदो को !
तुम मंत्री बन - बना सकते हो।
देश बेच सकते हो, जमीर बेच सकते हो।
लेकिन अमर नहीं हो सकते।
तुम्हें मरना होगा, ठीक उसी तरह।
जैसे सभी लोग अब तक 
मृत्यु को प्राप्त हुए हैं।
नफरत परोसने वाले।
तुम्हारी नफरत रंग ला रही है।

-डॉ लाल रत्नाकर

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