मंगलवार, 3 जनवरी 2023

नए वर्ष की नई चाह है कैसे पूरी होगी।

 


नए वर्ष की नई चाह है।
कैसे पूरी होगी।
जुमलों के गमलों से,
दुश्मन के हमलों से,
मित्र भाव में शत्रु भाव में।
सब में संदेश गया है।
क्या ये भारत नया-नया है।
वर्ष नया है दिन तो वही पुराना।
जीवन का ताप बढ़ गया।
स्वास्थ्य रहित जंजालों का।
अब संताप बढ़ गया,
काम बढ़ गया, दाम बढ़ गया।
जीवन का परिमाप बढ़ गया।
ज्ञान और विज्ञान यहां पर।
जीत गया अज्ञान यहां है।
नफरत में जो जन्म लिया है।
कैसे वह इंसान बन गया।
अंधविश्वास का ज्ञाता है वह।
पाखंडी नहीं कहलाता है।
लूटपाट कर महल बना कर।
बैठ गया सन्यासी बनकर।
ताज पहन कर आता है।
ठाट बाट इतने हैं उसके।
पर सन्यासी कहलाता है।
नहीं विकास का ज्ञान उसे है
अज्ञान को ज्ञान बताता है।
हत्याओं के श्मसान पर।
सिंहासन जिसका लग जाता है।
नए वर्ष की नई चाह है।
वो सपनों की राह दिखाता है।
उस पर चलना सपने जैसा।
जो बार-बार रुलाता है।


-डॉ लाल रत्नाकर

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