शुक्रवार, 26 मई 2023

वक्त की नब्ज को जो भांप लेते हैं


वक्त की नब्ज को जो भांप लेते हैं
भविष्य को मानने वाले, 
जब यह मान लेते हैं?
जो भी भाग्य में है मेरे !
वही सब कुछ नहीं है।
सितारों से आगे बहारों से आगे,
चमन में अमन का,
पैगाम जो भांप लेते हैं।
उन्हें नफरत का हर मंजर पता है।
वह न जाने क्यों नहीं जानते की।
उसके पागलपन के पीछे 
बहुत जहरीला पहर है।
तुम्हारी असलियत के पीछे 
जो नकली चेहरा है।
जो सदियों से ही बहरा है, 
आखिर वह कितना गहरा है।
कभी समझो अगर, 
इस खेल के मतलब।
हलाकानी इसी की है, 
जो दीवानी उसी की है।
न उससे ज्ञान का मतलब,
न उसको लौ जलानी है।
उसे तो आग में जलकर,
इसे भी भाग्य कहना है।
बनाया ऐसा मंजर है,
जहां सब हां में हां ही है।

-डॉ लाल रत्नाकर

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