लोग चिल्लाते रहे
तुम जाल बिछाते रहे।
जिसे तुम नफासत से
धर्म की चासनी लगाकर
रेड कारपेट समझाते रहे।
हिन्दुत्वा की पताका लेकर
संविधान को धता बताकर
राजशाही के प्रतीक लगाते रहे।
अवाम को मुफलिस बनाकर
भीख से उसको बहलाते रहे।
रोजगार का बहाना बनाकर
जन जन को बेरोजगार बनाते रहे
जुमले सूना सुनाकर गहरी नींद में
अपनी ही अवाम को नशे में
नफरत के जहर से सींचकर
कैसी फसल उगा रहे हो।
आज़ादी को मिटा रहे हो।
गुलाम बना रहे हो!
-डॉ लाल रत्नाकर
तुम जाल बिछाते रहे।
जिसे तुम नफासत से
धर्म की चासनी लगाकर
रेड कारपेट समझाते रहे।
हिन्दुत्वा की पताका लेकर
संविधान को धता बताकर
राजशाही के प्रतीक लगाते रहे।
अवाम को मुफलिस बनाकर
भीख से उसको बहलाते रहे।
रोजगार का बहाना बनाकर
जन जन को बेरोजगार बनाते रहे
जुमले सूना सुनाकर गहरी नींद में
अपनी ही अवाम को नशे में
नफरत के जहर से सींचकर
कैसी फसल उगा रहे हो।
आज़ादी को मिटा रहे हो।
गुलाम बना रहे हो!
-डॉ लाल रत्नाकर
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