अलविदा हुसैन साहब।
आपने इस मुल्क को
पूरी दुनिया में पहचान दी
मगर इस मुल्क के लोगों ने
आप को पहचानने में नादानी की।
कुछ गोबर भक्तों ने तो इस हद तक
अपनी कुंठा निकाल दी।
जिसकी वजह से आमजन में।
आपकी पहचान एक खलनायक की
बना और बनवा दी।
इस मुल्क को उन मुल्कों में कैसे देखा गया।
जहां आपको जमीन मिली और इज्जत भी।
आपको एक आतंकवादी बनाकर।
जिस मुल्क ने तड़ीपार कर दिया था।
आज इस मुल्क को उस तड़ीपार की।
कितनी जरूरत है ?
यह कम लोग समझ पाएंगे।
मगर जो समझ जाएंगे तड़ीपार का मतलब।
वह यह भी समझ जाएंगे कि आपके साथ।
कितना अन्याय हुआ यह मुल्क उनको।
सजा कब और कैसी देगा!
पता नहीं हम आपका कभी राश्ट््र ऋण
मिलकर भी उतार पाएंगे कि नहीं!
पर यह पता है कि अब यहां प्रतीकों की
मंडी अपराधियों के हाथ में चली गई है।
जो न प्रतीकों का अर्थ समझते हैं।
और ना ही जनमानस के लिए उसका उपयोग।
उन्हें तो प्रतीकों का इस्तेमाल बस !
अपनी सत्ता के लिए जरूरी है।
कल्पना लोक से वर्तमान कितना विचलित है।
सपने मर गए हैं और वह जो मनभावन है
उसकी जगह निरंतर दिखाए जा रहे हैं।
आपको विनम्र नमन कहते हुए।
आत्म सम्मान डिग जाता है।
और अज्ञात भय पसर जाता है।
जीवन के अनंन्त आनंद के अतिरेक में।
योग संयोग सब यहां झूठा है।
सच है तो केवल तानाशाही।
आपने इस मुल्क को
पूरी दुनिया में पहचान दी
मगर इस मुल्क के लोगों ने
आप को पहचानने में नादानी की।
कुछ गोबर भक्तों ने तो इस हद तक
अपनी कुंठा निकाल दी।
जिसकी वजह से आमजन में।
आपकी पहचान एक खलनायक की
बना और बनवा दी।
इस मुल्क को उन मुल्कों में कैसे देखा गया।
जहां आपको जमीन मिली और इज्जत भी।
आपको एक आतंकवादी बनाकर।
जिस मुल्क ने तड़ीपार कर दिया था।
आज इस मुल्क को उस तड़ीपार की।
कितनी जरूरत है ?
यह कम लोग समझ पाएंगे।
मगर जो समझ जाएंगे तड़ीपार का मतलब।
वह यह भी समझ जाएंगे कि आपके साथ।
कितना अन्याय हुआ यह मुल्क उनको।
सजा कब और कैसी देगा!
पता नहीं हम आपका कभी राश्ट््र ऋण
मिलकर भी उतार पाएंगे कि नहीं!
पर यह पता है कि अब यहां प्रतीकों की
मंडी अपराधियों के हाथ में चली गई है।
जो न प्रतीकों का अर्थ समझते हैं।
और ना ही जनमानस के लिए उसका उपयोग।
उन्हें तो प्रतीकों का इस्तेमाल बस !
अपनी सत्ता के लिए जरूरी है।
कल्पना लोक से वर्तमान कितना विचलित है।
सपने मर गए हैं और वह जो मनभावन है
उसकी जगह निरंतर दिखाए जा रहे हैं।
आपको विनम्र नमन कहते हुए।
आत्म सम्मान डिग जाता है।
और अज्ञात भय पसर जाता है।
जीवन के अनंन्त आनंद के अतिरेक में।
योग संयोग सब यहां झूठा है।
सच है तो केवल तानाशाही।
-डॉ लाल रत्नाकर
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