यह समय है
अधर्म के उन्माद का,
व्यक्ति के अवसाद
और अभिमान का।
तन खड़ा है, मन अड़ा है,
झूठ के मचान पर।
जो आजकल घर-घर में
कर गया प्रवेश है।
वहां सुरक्षा का नहीं,
कोई भी समावेश है।
उद्देश्य उन सबका एक है।
सब कुछ हडप अपना कहें।
निर्धनता का यही दोष है।
पीढियां इतिहास की !
तरह ही है खड़ी इस युग में।
जानकारी लेने की बजाय।
इतिहास अपना थोपती हैं,
झूठ और पाखंड की।
अभिमान से वह परोसते हैं।
अपमान के उस उद्देश्य को।
जिससे गुलामी थोप दी है।
आज आजादी के ललाट पर।
साहूकार का सहारा,
लेकर उस ठेकेदार ने।
यह समय है
अधर्म के उन्माद का,
व्यक्ति के अवसाद
और अभिमान का।
तन खड़ा है, मन अड़ा है,
झूठ के मचान पर।
जग को बढ़ा रहा है,
झूठ का वह फलसफा।
गढ़ रहा है फिर से वह
अधर्म के आख्यान को।
झूठ के अभियान को।
-डॉ लाल रत्नाकर
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