सोमवार, 18 दिसंबर 2023

अंधेरे में खोजने निकले थे वो।

 
अंधेरे में खोजने निकले थे वो।
खोज में उनको जो कुछ मिला।
साथ लाए मुफ्त बिना विचार के,
मदमस्त हैं जो लेकर आए हैं वह।
उनको कहां पता कि वह भक्त हैं।
उनसे ज्यादा खुद ही ये आशक्त हैं।
कुछ साथ उनके और आए हैं यहां।
जो बीमार हैं एक ही बिमारी के।
एक दूसरे के मददगार हैं लाचारी के।
सत्ता के लिए उनकी तलाश जारी है।
विचारों की महामारी एक बीमारी है।
समाजवाद की अवधारणा से, 
उनकी वैचारिक दूरी जारी है।
यह बदलने निकले हैं जग को,
इनका बदलना रोज एक बीमारी है।
भला होता नहीं दिखता कहीं से।
इनका डर भी सरकारी है।

- डॉ.लाल रत्नाकर।


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