मंगलवार, 3 सितंबर 2024

शायद पहली बार




शायद पहली बार 
ऐसा नहीं हुआ है कि 
किसी काबिल आदमी को 
नाकाबिल से पराजित 
करा दिया गया है।
या उसका चयन नहीं हुआ है
एकलव्य की बात छोड़ भी दें 
तो हजारों लाखों नौजवानों के
साथ यही हुआ है।
यह क्यों होता है इस पर 
लिख डालिए महाग्रंथ।
फर्क क्या पड़ता है 
उन पर जो यह करते हैं 
फर्क हम सब पर पड़ता है 
क्योंकि हम सिपाही की लाइन में,
अपने सिपाहसालारों को 
हजारों लाखों भेंट करके 
भर्ती पाते रहे हैं।
जज बनने से घबराते रहे हैं, 
यदि लड़ाई वहां से शुरू होती 
तो आज अन्याय का रास्ता 
इतना आसान न होता।
अपनी अपनी बर्बादियों पर 
ग्रंथ लिखने की जरूरत ना पड़ती। 
यह भी कोई लिखने की चीज होती है।
लिख करके बाबा साहब बनने की, 
कला और थी 
जो आज समझ में नहीं आती। 
लिखना ही था तो 
क्रांति का इतिहास लिखते हैं। 
बराबरी के विकास के लिए 
कोई उपाय लिखते।

-डॉ लाल रत्नाकर

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