धैर्य की भी इंतेहा होती है।
तुम्हारी क्रूरता से
मनुष्यता रोती है।
कहीं धर्म के नाम पर,
कहीं जाति के नाम पर,
कहीं लिंग के नाम पर,
कहीं तुम्हारे बहसीपन
के नाम पर,
छल, प्रपंच, चोरी और सीनाजोरी,
और न जाने क्या-क्या,
जो दिल में रखते हो,
वह मुंह पर नहीं आता,
जो मुंह पर आता है
वह अमल में नहीं आता,
न जाने क्यों तुम्हें देश का संविधान,
नहीं भाता ?
आज से नहीं
संविधान निर्माता के विचार
तुम्हें रास नहीं आते।
यही कारण है कि तुम।
उसे मिटाने में लगे हो।
जिसे छुपाने में लगे हो।
रोज-रोज वही निकल के आ रहा है।
अब पूरा देश तुम्हारे खिलाफ
एकजुट होकर खड़ा हो रहा है।
तुम्हारी क्रूरता से
मनुष्यता रोती है।
कहीं धर्म के नाम पर,
कहीं जाति के नाम पर,
कहीं लिंग के नाम पर,
कहीं तुम्हारे बहसीपन
के नाम पर,
छल, प्रपंच, चोरी और सीनाजोरी,
और न जाने क्या-क्या,
जो दिल में रखते हो,
वह मुंह पर नहीं आता,
जो मुंह पर आता है
वह अमल में नहीं आता,
न जाने क्यों तुम्हें देश का संविधान,
नहीं भाता ?
आज से नहीं
संविधान निर्माता के विचार
तुम्हें रास नहीं आते।
यही कारण है कि तुम।
उसे मिटाने में लगे हो।
जिसे छुपाने में लगे हो।
रोज-रोज वही निकल के आ रहा है।
अब पूरा देश तुम्हारे खिलाफ
एकजुट होकर खड़ा हो रहा है।
-डॉ लाल रत्नाकर

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