चित्कार से मुक्त
शक्ति की खोज
प्रकृति के नियम से युक्त शक्ति!
तवाह कर देगी !
उसकी नियति और नीति।
जो प्रकृति के विधान को।
सत्य और असत्य के
संकुल से छेड़छाड़ करेगा।
यदि तुम्हें गुमान है
की, तुम शक्तिमान हो।
तो खबरदार यह बात समझ लो।
प्रकृति से तुम छेड़छाड़ कर रहे हो।
यह तुम्हारी प्रकृति है !
जो तुम्हें अनाचार की।
अत्याचार फैलाने की,
और अंदर से डरे होने की।
अनुभूति कराता रहता है।
डर इस बात का भी रहता है !
कि तुम बौखला जाते हो।
यह संविधान का ही विधान है !
कि तुम्हारी बौखलाहट
नजर आने लगती है।
प्रकृति उसे बहुत सलीके से
उजागर कर देती है।
अन्यथा तुम्हारे मन का
चोर बाहर नहीं आता !
बाहर आती है बार बार
तुम्हारी चोरी।
मैं नहीं जानता चोरी के खिलाफ।
संविधान के कानून क्या करेंगे।
लेकिन इतना जरुर जानता हूं।
प्रकृति के विधान तुम्हारा !
सत्यानाश कर देंगे।
तब तुम बौखलाकर
अनाप-सनाप बकने लगोगे।
यही है प्रकृति का प्रकोप !
प्रकृति का विधान।
-डॉ.लाल रत्नाकर
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