आज के समय में
जिस तरह के संकट
खड़े किए जा रहे हैं।
उन्हें संकट की बजाय,
उपकार बताया जा रहा है।
नौकरी लेकर लाभार्थी
बनाया जा रहा है।
लाभार्थी को तरह-तरह से
फुसलाया जा रहा है।
संविधान मिटाने के लिए।
निष्पक्ष चुनाव कराने की बजाय।
उनका वोट -
₹10000 में खरीदा जा रहा है।
चुनाव आयोग समाप्त हो जाए।
इसके लिए चुनाव आयुक्त
पूरी तरह से आमादा है।
ऐसा लगता है !
जैसे सरकार का प्यादा है।
यह लड़ाई केवल धर्म की नहीं है।
धर्म की कम जातियों की ज्यादा है।
यह देश की मर्यादा के खिलाफ है।
पर इसको चलाने वाले !
अपने को देशभक्त कहते हैं।
लड़ने की ताकत नहीं है।
पर सत्ता में बने रहते हैं।
जो लोग सत्ता में हैं !
वह क्यों सत्ता में हैं !
उन्हें नहीं पता वह किसके साथ हैं !
-डॉ लाल रत्नाकर

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