प्रवृत्तियाँ और प्रकृति
हमारे साथ हमेशा एक जैसी नहीं होती !
हमलोग संस्कृति के विभिन्न अवसरों पर
परिवर्तित और परिवर्धित होते रहते हैं !
यह मानकर कि यह परम्पराएँ हमारी है
जबकि सदा परंपराएं ही गढ़ी जाती है !
जिनका कोई सरोकार नहीं होता है !
चाहे अनचाहे सुख में दुख में सदा सदा !
सब कुछ अवैज्ञानिक होता है अंधभक्ति
आमतौर पर वह सब इसके पात्र होते हैं !
लुटेरो से लूटे हुए लाचार होते हैं भक्त !
जो जो अनुभवहीनता के शिकार होते हैं
कबीर कितनी बार क्षमा दया करते हुए
जगाते हैं उन्हें जो डूबे हैं अंधविश्वाश में
अखंड पाखंड की चार दीवारी में बंद हैं
उनकी मुक्ति के लिए चिल्लाते हैं
उन्हें सुनाई नहीं देता जिनके कानों में
झूठ जुमले और भक्ति के संगीत बजते हैं
समाज, राजनीति, अर्थनीति, धर्मनीति में
उनकी कोई हिस्सेदारी नहीं है !
उन्हें उठना होगा और लड़ना होगा
अपने अधिकारों के लिए ।
डॉ लाल रत्नाकर
डॉ लाल रत्नाकर