बुधवार, 15 अक्टूबर 2025

तुम कब चले जाओगे कौन जानता है।


तुम कब चले जाओगे 
कौन जानता है। 
जब तक हो तब तक 
तुम्हें चैन नहीं है। 
झूठ, फरेब, चोरी, बेईमानी, कुकर्म 
जितने भी बुरे शब्द हो सकते हैं 
तुम्हारे लिए कम हैं।
फिर भी यह समाज 
तुम्हारा सम्मान करता है। 
क्या यही इस देश का 
सर्वनाश का कारण नहीं है। 
पहले के समाज में ऐसे लोगों को-
चोर उचक्का ?
व्यभिचार दुराचारी? 
मक्कार और हरामी?
आदि आदि शब्दों से 
संबोधित नहीं किया जाता था? 
यह सब आचरण कहां चले गए। 
क्या जो गए वह सब 
अपने साथ लेते गए। 
आज इसी प्रतिभा के धनी। 
कितने सम्मानित हो रहे हैं 
इस समाज में। 

-डॉ लाल रत्नाकर

संविधान से आऐ थे

 


संविधान से आऐ थे
जनता को भरमाए थे
मनुस्मृति संग लाए थे
उसी की राह अपनाय 
नियम कायदे से 
क्या मतलब है 
तानाशाही !
वाह वाह!
भक्तों को भाए।
हाहाकार। 
मचाए हैं। 
हिंदू मुस्लिम सिख इसाई। 
जो थे आपस में भाई-भाई। 
बौद्ध जैन में नहीं लड़ाई। 
धर्म अलग था। 
अलग थी शिक्षा 
ज्ञान के मंदिर 
विज्ञान के मंदिर 
भगवा रंग में रंगकर !
सबको बेच दिया है।
रेल बेचकर उसका इंजन 
डबल ट्रिपल कह
बुलडोजर में लगवाए है।
-डॉ लाल रत्नाकर

चुनाव आयोग :

 चुनाव आयोग : गलत गठन असंवैधानिक ! बिल्कुल अविश्वसनीय है। ट्रांसपेरेंट नहीं ऊफ ! देश का विपक्ष चुप है? देश की जनता चुप है ? जानते हुए कि … यह बेईमानी अलोकतांत्रिक है। केंचुआ अविश्वसनीय है । केंचुआ जिसका हर आचरण जन विरोधी है। जन विरोध का पहला प्रयोग बिहार में हुआ है। आगे पूरे देश में होना है। केंचुआ एक पार्टी का सहयोगी है। चुनाव कैसे निष्पक्ष होंगे। आप विश्वास कर लीजिए। यह विश्वास इस तरह होगा। जैसे अच्छे दिन आने वाले हैं। आप 15 लाख पाने वाले हैं। जैसे-जैसे आप स्वर्ग में जाने वाले हैं। वैसे ही वोट कम पड़ेंगे और गिने ज्यादा जाएंगे। हारने वाला जीत जाएगा और जीतने वाला हरा दिया जाएगा। जो जनता चिल्ला चिल्ला कर यह बता रही होगी कि फलां की सरकार आ रही है। उसके खिलाफ अखबार और गोदी मीडिया के लोग बता रहे होंगे कि ऐसा नहीं ऐसा होने वाला है। जिसकी सूचना का स्रोत नहीं होगा। इसकी सूचना का स्रोत किसी केंद्र से आई हुई सूचना होगी। डॉ.लाल रत्नाकर

गुरुवार, 9 अक्टूबर 2025

तेरे जुमले में

तेरे जुमले में 
और मेरे जुमले में। 
फर्क केवल इतना है
कि तुम सत्ता की 
कुर्सी से बोल रहे हो 
और मैं बेरोज़गारों के मंच से ॥
तुम्हारे पीछे 
पूंजीपतियों की फौज है 
देश की अकूत सम्पदा है 
और मेरे लिए 
बेरोजगारों ने चंदा किया है ।
तुम्हारे पास संगोल है
मेरे पास लाठी है।
-डॉ लाल रत्नाकर

गॉडसे अभी मरा नहीं है।

 

गॉडसे अभी मरा नहीं है।
गली गली में 
चाय की दुकानों पर चौराहों पर,
सीना तानकर खड़ा है। 
गांधी के देश के, 
सत्ता में आए लोग,
गोडसे की जय बोल रहे हैं। 
उसकी मूर्तियां लगवा रहे हैं। 
उस पर किताबें लिखवा रहे हैं।
गांधी को अब तो !
सिक्कों से भी हटा रहे हैं। 
नोटों से हटाने की तैयारी कर चुके हैं।
गांधी को लेकर यह कहां जा रहे हैं। 
किसी को नहीं बता रहे हैं ?
गोडसे को कहां-कहां लगाएंगे। 
अभी यह साफ-साफ नहीं बता रहे हैं। 
अभी तो केवल यह बता रहे हैं। 
गोडसे अभी जिंदा है।
उसके लिए बड़े-बड़े मंदिर बना रहे हैं। 
न्यायालय में हुड़दंग मचा रहा है।
अंबेडकर के लोगों को आंख दिख रहा है। 
जूता उठा रहा है। 
किस-किस पर चला रहा है। 
क्या सत्ता में बैठे हुए लोगों को 
दिखाई नहीं दे रहा है। 
दिखाई दे रहा है। 
उन्हें मजा आ रहा है। 
गोदी मीडिया उसे बहुत ही 
अभिमान से दिखा रहा है। 
बुद्ध का ज्ञान! 
बुद्ध का अभियान! 
बुद्ध की शांति। 
बुद्ध की दया, करूणा 
इस सबको 
निर्यात किया जा रहा है। 
विदेशी मंचों से 
गुणगान किया जा रहा है।
यहां पर गुंडो लफंगों को !
गोडसे बनाया जा रहा है।
जो घूम-घूम कर बस्ती बस्ती। 
बलात्कार कर रहा है। 
लिंचिंग कर रहा है। 
बुलडोजर चला रहा है। 
सबको पंगु बना रहा है। 
क्योंकि गॉडसे अभी मरा नहीं है।
गॉडसे अभी जिंदा है।
गॉडसे तब तक नहीं मरेगा।
जब तक मनुस्मृति रहेगा। 
बाबा साहब ने इसीलिए, 
इसे जलाया था!

-डॉ.लाल रत्नाकर

x

इतराने का भी कोई वक्त होता है।


इतराने का भी कोई वक्त होता है। 
मेरा यह सवाल कितना वाजिब है 
मैं नहीं जानता। 
यह विज्ञान का हमला है। 
विज्ञान का कमाल है। 
सामान्य समझ से ज्यादा। 
समझ का कायल है। 
थोड़े दिनों में सामान्य हो जाएगा। 
अभी तो थोड़ा जटिल है। 
देवी देवताओं को। 
मानने वालों के लिए आश्चर्य।
ए आई के युग में वह कितने पीछे हैं। 
अभी भी जूता उठा रहे हैं। 
दिल को आग लगा रहे हैं। 
न्याय से इतना घबरा रहे हैं।
-डॉ लाल रत्नाकर

उसकी हजारों साल की मनोवृत्ति में,

 

उसकी हजारों साल की मनोवृत्ति में,
सिर्फ नफरत और नफरत है।
बंधुत्व की विचार शून्यता है ,
बर्दाश्त करना उसकी खूबी जरूर है।
पर सहज नहीं उसे धकेला है 
उसके लिए मुमकिन नहीं है
समाज को बराबरी के तल पर।
बर्दाश्त करना। 
या विचार करना उसकी बराबरी के लिए 
तभी तो हजारों साल से 
वह नफरत के नासूर दिल में पाला है ।
इस सारे हालात के लिए -
क्या नहीं किया उसने गैर बराबरी के लिए 
बहुजन समाज का नेता ज़िम्मेदार है ।
अन्यथा एक दिन में सब कुछ बदल देगा !
सब कुछ बदल लेगा !

-डॉ.लाल रत्नाकर

रविवार, 5 अक्टूबर 2025

जुल्म तो हारता ही है !


जुल्म तो हारता ही है !
यह बात जुल्मी भी जानता है ! 
लेकिन यह हद ही हो गयी कि 
नफ़रती मानसिकता वाले 
सत्ताधारी पार्टी के लोग 
कितने जालिम अमानवीय भी हैं !
बदले की भावना से ही नहीं बल्कि!
साम्प्रदायिकता की भावना से
उत्तर प्रदेश और सपा के क़द्दावर 
नेता को बर्बरता की हद तक !
प्रताड़ित करने वाली मानसिकता 
से किये गए अत्याचार उत्पीड़न 
का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ा है ।
आज़म साहब ज़िंदादिल इंसान हैं ।
उनकी यह यातना और बदनामी 
इस बर्बर युग की ऐतिहासिक दास्ताँ है ! 


-डॉ लाल रत्नाकर


(नोट : श्री आजमखान साहब समाजवादी पार्टी के लीडर के साथ उत्तर प्रदेश सरकार के कई बार कैबिनेट मंत्री रहे हैं। इन सबसे अलग वह लोकसभा के बेबाक संसद सदस्य रामपुर उप  (सपा)  के रहे हैं। ईमानदार और नेकदिल इतने की आमलोगों में उनकी लोकप्रियता की कोई मिशाल ही नहीं। 
लेकिन मुश्लिम विरोधी मानसिकता की केंद्र और प्रदेश की सरकार ने उस व्यक्ति को तहस नहस करने की सामंती अलोकतांत्रिक नीतियों से वर्वाद करने की कोई योजना बाकी नहीं छोड़ी बस ह्त्या ही नहीं कराई और क्या नहीं किया बुलडोज़र से उनके विश्वविद्यालय लिब्रेरी स्कूल  कालेज घर क्या नहीं तोड़ा उनके लिए यह गीत )

धैर्य की भी इंतेहा होती है।

 
धैर्य की भी इंतेहा होती है। 
तुम्हारी क्रूरता से 
मनुष्यता रोती है।
कहीं धर्म के नाम पर, 
कहीं जाति के नाम पर,
कहीं लिंग के नाम पर, 
कहीं तुम्हारे बहसीपन
के नाम पर,
छल, प्रपंच, चोरी और सीनाजोरी,
और न जाने क्या-क्या, 
जो दिल में रखते हो, 
वह मुंह पर नहीं आता, 
जो मुंह पर आता है 
वह अमल में नहीं आता, 
न जाने क्यों तुम्हें देश का संविधान, 
नहीं भाता ?
आज से नहीं 
संविधान निर्माता के विचार 
तुम्हें रास नहीं आते। 
यही कारण है कि तुम। 
उसे मिटाने में लगे हो। 
जिसे छुपाने में लगे हो। 
रोज-रोज वही निकल के आ रहा है।
अब पूरा देश तुम्हारे खिलाफ 
एकजुट होकर खड़ा हो रहा है। 

-डॉ लाल रत्नाकर

इस गफलत में उस गफलत में


इस गफलत में 
उस गफलत में 
पड़ा रहा दिन रात 
खोद रहा था 
जड़ वह मेरी 
जिसके काले हाथ।
अधिकारों पर हिस्सेदारी,
जीएसटी जैसी।
आयकर की 
अलग विमारी।
कितना करे 
हिसाब।
डूबा हुआ है 
आम आदमी 
अपने 
रोटी दाल में।
मुफ्तखोर 
व्यापारी हो रहा है 
माला माल।
नियम कायदे 
कैद हो गये,
अत्याचारी के हाथ।
बुलडोजर से 
करता है वह
सही ग़लत की बात!
कोर्ट कचहरी से 
लड़ लेता था
जिसके खाली हाथ।
सत्य अहिंसा 
जुमले हैं अब
सत्ता पर हत्यारे हैं जब।
संविधान पर कब्जा है 
मनुवाद का पर्दा है।
कौन हटाए कौन चढ़ाएं।
भक्तों का ही जब  पहरा हो।

-डॉ लाल रत्नाकर

याद स्मृतियों में रहती है

 
याद स्मृतियों में रहती है 
रोज़ रोज़ पूजकर 
अपराध करने से नहीं !
स्मृतियों के इतिहास 
वास्तविक होते हैं ।
मूर्तियों और किताबों में 
झूठ का इस्तेमाल होता है ।
इसलिए इतिहास पुनर्लेखन 
की बात करते हैं ।
जिन्हें केवल अपना
हित दिखता है।
इतिहास तथ्यों पर आधारित होता है।
गढ़ा नहीं जाता
मढ़ा नहीं जाता।

-डॉ लाल रत्नाकर

समय का चक्र इस तरह से चलता है।

 
समय का चक्र इस तरह से चलता है।
जब नकली असली बन जाते हैं।
असली कहीं खो जाते हैं। 
आजादी से लेकर अपने आसपास तक।
हम मर्यादा में आंखें बंद कर लेते हैं। 
अमर्यादित झंडा गाड़ रहा होता है।
बिना किसी शर्म के अपनी भागीदारी बता रहा होता है। 
पूरे इतिहास को झूठा साबित करके। 
अलग इतिहास बन रहा होता है। 
नयी दुनिया, नया देश, 
स्मार्ट शहर?
स्वावलंबी गांव और लाभार्थी लोग ?
इसी प्रयोगशाला की उपज है।
बेरोजगारी भुखमरी कोई एक दिन का इलाज नहीं है। 
यह लाइलाज बीमारी है।
जिसे जुमले से सुलझा रहा होता है।
चंबल के पत्थरों से निकले हुए हथियार। 
संग्रहालयों में रखवा रहा होता है।
उनका यह यशोगान कर रहा होता है।
जिसे इतिहास ने काले पन्नों में छुपा रखा है।
उन स्मृतियों को दिल में दबा रखा है। 
जो हमारे विकास में बाधक थी।
समता समानता और बंधुत्व की दुश्मन थी और हैं। 
मगर अंधीअवाम मुफ्त के नशे में झूम रही है। 
नए इतिहास के झूले में झूम रही है। 
जब शोक मनाने का दिन है।
जश्न मना रही है। 
गाल बजा रही है।

-डॉ लाल रत्नाकर

सवाल यह है कि सवाल पूछें किससे?


सवाल यह है कि 
सवाल पूछें किससे?
उनसे जिन्होंने जवाब रट रखा है।
अन्याय की किताब से।(मनुस्मृति)
जीवन को पत्थर समझ रखा है। 
मन को लूटेरा बना रखा है। 
दिल की जगह गड्ढा खोद रखा है। 
जिसमें कचरा डालकर। 
खाद बना रहा है। 
भविष्य की फसल उगाने का। 
जिसने चोरी के हर हथकंडे।
सिखा है और सिखा रहा है।
पूरी दुनिया को भरमा रहा है ?

-डॉ लाल रत्नाकर

जीने की तमन्ना लिए निकला था।

जीने की तमन्ना लिए 
निकला था।
भीड़-भाड़ वाली बस्ती से।
ऐसा लगता था जैसे जन्नत ढूंढ रहा हूं। 
जब-जब मूड़ कर देखा। 
लुटेरे पीछे पड़े थे। 
वह क्या लूट रहे थे, 
हमें नहीं पता था। 
वह लूटते रहे, 
हम बढ़ते रहे। 
हर तरह के लुटेरे थे, 
ज्ञान के, विज्ञान के,
संस्कार के।
सद्विचार के, राजनीति के, सदाचार के।
मगर लूट में शामिल जो लोग थे। 
उन्हें अभिमन्यु ने नहीं पहचाना।
यदि वह पहचान गया होता। 
तो महाभारत का क्या होता ?
मेरी यात्रा मेरा मिशन 
उनके लिए अज्ञात था। 
मगर लुटेरों के 
किसी काम का नहीं था।
व्यक्ति 100 साल में बूढ़ा हो जाता है, 
संस्थाएं 100 साल में जवान।
जब संस्थाएं जवान होती हैं। 
तब होती है उनकी असली पहचान।

-डॉ.लाल रत्नाकर 

बुधवार, 24 सितंबर 2025

वो जो सारे साम्राज्य पर काबिज है।


आप रिसर्च कर लो
मानवता के मूल्य पर बहस कर लो ।
समाज विज्ञान पर काम कर लो।
उसके हित पर संधान कर लो।
पर !
समाज में वह व्यक्ति तुम्हें खारिज कर देगा
जिसकी प्रवृत्ति नियति और प्रणाली
समाज विरोधी है संस्कृति विरोधी है,
विकास विरोधी है।
क्योंकि !
वह स्वार्थी है
लोभी और लालची है
समग्र विकास का दुश्मन है।
बात करता है कल्याण का।
काम करता है स्वार्थ का।
रात दिन लगा रहता है,
विनाश की प्रक्रिया में।
एक काम उसका बता दो
जो समाज उपयोगी हो।
जरूरतमंद के हित में हो।
प्राकृतिक हो।
सांस्कृतिक हो !
वो जो
सारे साम्राज्य पर काबिज है।
-डॉ लाल रत्नाकर 

अकेला चला था

अकेला चला था 
ले के झोला चला था 
लोग मिलते रहे 
उनको ठगता रहा 
झूठ गढ़ता रहा 
जुमले मढ़ता रहा 
धर्म कहता रहा 
अधर्म करता रहा 
ज्ञान को अज्ञान से 
ढकता रहा !
विश्वगुरु 
खुद को कहता रहा !
डिग्री चोरी से वोट चोरी 
की साजिश तो करता रहा 
इस फकीरी से सारे 
डरते रहे मिथ्या काम करते रहे 
डॉ लाल रत्नाकर 

गुरुवार, 18 सितंबर 2025

मनुष्यता विलुप्त हो गयी है

चित्र कुमार संतोष : संग्राहक - सुश्री माधुरी दीक्षित 

मनुष्यता विलुप्त हो गयी है 
जुमले और झूठ के कमाल से  
पूंजीपतियों के माल से सत्ता पे 
सत्ता के कमाल से मालामाल 
जो हुआ है वह मनुष्य है क्या ?
कौन तय करेगा उसकी जिम्मेदारी 
न्यायालय !
व्यापारी का राजा से 
सत्ता का व्यापारी से 
कैसा सम्बन्ध हो !
यदि दोनों व्यापारी हों !
लेनदेन जारी हो !
कोई भी लाचारी हो !
खाली बाज़ार है 
खरीददार नदारद है ?
बेहाल और बदहाल है !
देश का यही हाल है !

-डॉ लाल रत्नाकर 

सोमवार, 21 जुलाई 2025

प्रवृत्तियाँ और प्रकृति

 


प्रवृत्तियाँ और प्रकृति 
हमारे साथ हमेशा एक जैसी नहीं होती !
हमलोग संस्कृति के विभिन्न अवसरों पर 
परिवर्तित और परिवर्धित होते रहते हैं !
यह मानकर कि यह परम्पराएँ हमारी है 
जबकि सदा परंपराएं ही गढ़ी जाती है !
जिनका कोई सरोकार नहीं होता है !
चाहे अनचाहे सुख में दुख में सदा सदा !
सब कुछ अवैज्ञानिक होता है अंधभक्ति 
आमतौर पर वह सब इसके पात्र होते हैं !
लुटेरो से लूटे हुए लाचार होते हैं भक्त !
जो जो अनुभवहीनता के शिकार होते हैं 
कबीर कितनी बार क्षमा दया करते हुए 
जगाते हैं उन्हें जो डूबे हैं अंधविश्वाश में 
अखंड पाखंड की चार दीवारी में बंद हैं 
उनकी मुक्ति के लिए चिल्लाते हैं 
उन्हें सुनाई नहीं देता जिनके कानों में 
झूठ जुमले और भक्ति के संगीत बजते हैं 
समाज, राजनीति, अर्थनीति, धर्मनीति में
उनकी कोई हिस्सेदारी नहीं है !
उन्हें उठना होगा और लड़ना होगा 
अपने अधिकारों के लिए ।
डॉ लाल रत्नाकर

गुरुवार, 10 जुलाई 2025

आमतौर पर मेरी तस्वीरों में


आमतौर पर मेरी तस्वीरों में 
हमारे आसपास के लोग होते हैं। 
बस उन्हीं को पहचानने की
ललक मन में समाहित किए हुए 
रचता रहता हूं दिन रात! 

शायद किसी दिन,
वह भी बोल दें जो मुंह फुलाए हैं 
न जाने क्यों घबराए हैं।
पता नहीं मेरा क्या चुराऐ हैं।
आरोप हम पर लगाए हैं।

हमारा वही समाज 
हमारे चित्रों में मुखरित होता है 
जिसे आमतौर पर लोग 
पसंद नहीं करते क्योंकि 
उन्हें यह इंसान नहीं लगते।

मोनालिसा का सच! 
कितने लोग जानते हैं! 
लिओनार्दो दा विंची आजीवन
जो बात कहने की कोशिश की है। 
उसे कितने लोग समझते हैं। 

नहीं जानते जो अपनी संस्कृति 
अपने को संस्कृति पुरुष कहते हैं 
सांस्कृतिक साम्राज्यवाद का 
दंश पाले हुए हैं।
और समाजवादी कहते हैं।

आईऐ आपको हम उनसे 
रूबरू कराते हैं जिन्हें हम 
अपने चित्रों में बनाते हैं। 
यह चित्र नहीं मेरा परिवार है 
रात दिन उसी परिवार को सजाते हैं।

-डॉ लाल रत्नाकर 

गुरुवार, 5 जून 2025

क्या यह शहंशाह है

 

क्या यह शहंशाह है 
आगे भी बना रहना चाहता है
इसलिए उसे संविधान 
लोकतंत्र की मर्यादा 
देश की गरिमा नहीं भाती है।
जनता की आकांक्षाओं
सैनिकों की सुरक्षा का
आमतौर पर कोई ध्यान 
नहीं रखता है।
ध्यान रहता है तो केवल -
केवल आम आदमी को 
प्रतीकों के माध्यम से 
ठगने का, वोट के लिए 
जिससे शहंशाह बना रहे हैं 
हर तरह से संविधान विरोधी 
गतिविधियों में शरीक रहे।
जो कहे वह सब मान ले। 
जो शहंशाह माने हुए हैं। 
बाकियों को जिन्होंने 
वहां भेज रखा है ।
जहां इन्हें होना चाहिए था। 
हमारे डरे हुए समाज में 
उनकी जगह जहां होनी थी 
वहां न जाना पड़े उसके लिए 
अंधभक्त बन गए हैं। 
और अंधभक्ति के व्यापार में 
धड्ड़ले से व्यापार कर रहे हैं। 
लेकिन वह भी डर रहे हैं। 
कि कल कहीं कोई शहंशाह 
बदल गया और उनकी 
जगह भी बदल जाएगी। 

- डॉ लाल रत्नाकर