गुरुवार, 11 दिसंबर 2025

बर्बादी के लिए ज़िम्मेदार कौन है ?


बर्बादी के लिए ज़िम्मेदार कौन है ?
क्या वह बताएगा जो बर्वाद किया है ।
या वह अकड़कर आगे आएगा !
वही जो बेईमान है ।
उस पर ही तोहमत 
लगाएगा ।
जो वक़्त के हिसाब से वफादार है ।
प्रतिष्ठा के लिए नहीं !
मर्यादा बचाने के लिए भी नहीं।
सत्य को बचाए रखने के लिए।
यह कहानी जो नई नहीं है ।
हज़ारों हज़ार साल पुरानी है ।
बस उसके पात्र नये हैं !
जिनका अमानवीय किरदार है ।
इतिहास और इतिहासकार 
बदल रहे हैं ?
समाजवाद जो अब
नये साम्राज्यवादी
और मनुवादी हैं ।
दुनिया कहीं जाए, 
उनको देश गड्ढे में ले जाने की।
बहुत जल्दी है।
इस अपराध में उनकी
पूरी हिस्सेदारी है।
जिनको इस देश को बचाने की जिम्मेदारी है।
- डॉ लाल रत्नाकर

मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।


मजहब नहीं सिखाता 
आपस में बैर रखना। 
यह गुलसिता हमारा,
यह वतन हमारा!
एस आई आर ?
नफरत का जहर है डाला। 
जातियों के आधार पर। 
मतदाता बना रहा। 
ऐसा बीएलओ ही बता रहा।
वह इस दबाव को सह नहीं पा रहा।
दबाव में ही वह जान गवा रहा है। 
एस आई आर के चक्कर में।
मौतों का मरघट 
चुनाव आयोग बना रहा है। 
यह कैसी चालाकी है। 
क्या देश में दुश्मन बाकी है। 
डॉ लाल रत्नाकर

लोग चले जाते हैं। रह जाता है उनका कृत्य।


लोग चले जाते हैं।
रह जाता है उनका कृत्य।
जब वह होते हैं 
तब समझ में नहीं आता। 
वह क्यों है। 
उनकी जरूरत क्या है?
जो समझ में आते हैं। 
जब वह चले जाते हैं। 
तब समझ में आता है। 
वह क्यों थे? 
उनकी जरूरत क्या थी। 
क्यों कर रहे थे वह दुष्कर्म।
जिन्हें हम याद करते हैं। 
सदियों सदियों युगों युगों। 
नहीं मानते उनकी बात। 
करते रहते हैं रात दिन खुरापात।
बकवास, लुच्चों का स्वागत।
टुच्चों का साथ।
मिला रहे होते हैं! 
हर उससे हाथ।
जो हाथ गंदे हैं। 
सने हुए हैं अपराध में। 
अपनों के सपनों के खिलाफ। 
झूठी वाहवाहियों में।
घूम रहे होते हैं दिन रात। 
हमें याद नहीं आते। 
जब वह हमें बता रहे होते हैं। 
हमारे विकास के मार्ग। 
वह बहुत याद आते हैं। 
जो ले जा रहे होते हैं। 
विनाश के मार्ग पर। 
हम क्यों नहीं पहचान पाते।
उनके कलुषित विचार।
हजारों हजार साल से। 
--डॉ लाल रत्नाकर

बुधवार, 26 नवंबर 2025

मुझे वह कभी पसंद नहीं था।



मुझे वह कभी पसंद नहीं था।
जो पसंद था ।
वह मेरे करीब नहीं था।
करीब तो वह भी नहीं था।
जो नापसंद था!
उसकी नापसंदगी में,
मेरा कोई दोष नहीं था,
उसके जो दुर्गुण थे ।
उसी से लोग उसे
अच्छा मानते थे।
उनके लिए वह अच्छा था।
जो खुद अच्छे नहीं थे।
यह बहुत विचित्र सवाल था।
सवाल का जवाब हमेशा।
मेरा बहुत अच्छा होता था।
लोग जवाब को अच्छा कहते थे।
लेकिन न जाने क्यों ?
हमसे खुश नहीं होते थे।
मैं मन ही मन सोचता था।
अच्छे को अच्छा कहना।
बुरे को बुरा कहना।
कैसे अच्छा नहीं है।
जो लोग इसका जवाब देते थे।
उनका कहना था।
कोई जरूरी है सब कुछ आपको कहना।
बात तो उनकी भी सही थी।
पर मुझे लगता था।
झूठे के सामने क्यों चुप रहना।
हालात देखिए!
पूरा देश चुप है।
झूठों के सामने।

-डा.लाल रत्नाकर 

सोमवार, 17 नवंबर 2025

हम क्यों गीत गाएँ

 

हम क्यों गीत गाएँ
विचारों की,
हत्या करें और गीत गाए।
तुम्हारी महफ़िल में
दरिंदे बहुत हैं ।
हत्यारों के उत्सव में 
'शोकगीत' गीत गाएँ।
लोकगीत गाऐं!
बिरह गीत गाऐं।
बीररस सुनाएं।
मन को समझाएं।
बहुत कष्ट उठाएं। 
यह किसको बताएं ,
किससे छुपाएं।
नफरत के मोहल्ले में 
कैसे उल्लास मनाएं।
कैसे दिल को बहलाएं। 
रचें या रचाऐंं।
क्या-क्या छुपाएं। 
क्या-क्या दिखाएं।

-डॉ लाल रत्नाकर

जो अपने साथ नहीं है


जो अपने साथ नहीं है 
वह उनका साथ ! 
छोड़ने की बात कर रहे हैं।
जो सदियों से उनके साथ खड़े हैं 
जिनको जोड़ने की बात कर रहे हैं 
हम उनके दुश्मन बने हुए हैं।
जो धर्म के नाम पर 
अधर्म की बात कर रहे हैं ।
जिस धर्म में हैं 
उनका धर्म नहीं है 
उस धर्म के यह बंधुआ हैं ।
जिनका कोई स्वाभिमान नहीं है 
हां यह इंसान नहीं है 
वहां यह भगवान ढूंढ रहे हैं। 
जो अपनों के साथ नहीं है 
सपनों की बात कर रहे हैं। 
इन अज्ञानियों की वजह से। 
हजारों साल से मानवता गुलाम है। 
जहां इंसान-इंसान नहीं है। 
वहां इनका कोई भगवान है। 
भगवान इन्हें जानता नहीं है।
मानता नहीं है।
यह उसी के भरोसे 
मानवता का विरोध कर रहे हैं 
दानवों का समर्थन।
जो अपनों के नहीं हैं 
वह अपने दुश्मनों को 
जोड़ने की बात कर रहे हैं। 

-डॉ लाल रत्नाकर

बुधवार, 12 नवंबर 2025

आयोग अयोग्यता की पराकाष्ठा पर !


तुम्हारा जन्म ही दूषित तरीके से हुआ है 
"आयोग" अयोग्यता की पराकाष्ठा पर !
इतरा रहे हो शर्म देश को आ रही है !
तुम्हारे नाज़ायज़ बाप तुम्हें बेच रहे हैं !
"आयोग"अयोग्यता की पराकाष्ठा पर !

अंधों की तरह तुम बिक रहे हो आने पौने में !
तुमने बिहार को देखा ! वह बुद्ध की धरती है !
वहां झूठ बेईमानी, तानाशाही नहीं चलेगी !
"आयोग"अयोग्यता की पराकाष्ठा पर !

तुम्हारे जैसे अफसर मिल जरूर जाएंगे !
पर कितने कुछ तो ईमानदार होंगे ही !
गुजरात में भले ना हों क्योंकि ?
उनको जेल में डाल दिया गया है !
हो सकता है वह भूल गए हों कि वह !
संविधान की शपथ लेकर आये थे !
बेच दिया हो अपने वसूल कारपोरेट को !
"आयोग"अयोग्यता की पराकाष्ठा पर !

-डॉ० लाल रत्नाकर 


बुधवार, 15 अक्टूबर 2025

तुम कब चले जाओगे कौन जानता है।

तुम कब चले जाओगे
कौन जानता है।
जब तक हो तब तक
तुम्हें चैन नहीं है।
झूठ, फरेब, चोरी, बेईमानी, कुकर्म
जितने भी बुरे शब्द हो सकते हैं
तुम्हारे लिए कम हैं।
फिर भी यह समाज
तुम्हारा सम्मान करता है।
क्या यही इस देश का
सर्वनाश का कारण नहीं है।
पहले के समाज में ऐसे लोगों को-
चोर उचक्का ?
व्यभिचार दुराचारी?
मक्कार और हरामी?
आदि आदि शब्दों से
संबोधित नहीं किया जाता था?
यह सब आचरण कहां चले गए।
क्या जो गए वह सब
अपने साथ लेते गए।
आज इसी प्रतिभा के धनी।
कितने सम्मानित हो रहे हैं
इस समाज में।
-डॉ लाल रत्नाकर

संविधान से आऐ थे

 


संविधान से आऐ थे
जनता को भरमाए थे
मनुस्मृति संग लाए थे
उसी की राह अपनाय 
नियम कायदे से 
क्या मतलब है 
तानाशाही !
वाह वाह!
भक्तों को भाए।
हाहाकार। 
मचाए हैं। 
हिंदू मुस्लिम सिख इसाई। 
जो थे आपस में भाई-भाई। 
बौद्ध जैन में नहीं लड़ाई। 
धर्म अलग था। 
अलग थी शिक्षा 
ज्ञान के मंदिर 
विज्ञान के मंदिर 
भगवा रंग में रंगकर !
सबको बेच दिया है।
रेल बेचकर उसका इंजन 
डबल ट्रिपल कह
बुलडोजर में लगवाए है।
-डॉ लाल रत्नाकर

चुनाव आयोग :

 चुनाव आयोग : गलत गठन असंवैधानिक ! बिल्कुल अविश्वसनीय है। ट्रांसपेरेंट नहीं ऊफ ! देश का विपक्ष चुप है? देश की जनता चुप है ? जानते हुए कि … यह बेईमानी अलोकतांत्रिक है। केंचुआ अविश्वसनीय है । केंचुआ जिसका हर आचरण जन विरोधी है। जन विरोध का पहला प्रयोग बिहार में हुआ है। आगे पूरे देश में होना है। केंचुआ एक पार्टी का सहयोगी है। चुनाव कैसे निष्पक्ष होंगे। आप विश्वास कर लीजिए। यह विश्वास इस तरह होगा। जैसे अच्छे दिन आने वाले हैं। आप 15 लाख पाने वाले हैं। जैसे-जैसे आप स्वर्ग में जाने वाले हैं। वैसे ही वोट कम पड़ेंगे और गिने ज्यादा जाएंगे। हारने वाला जीत जाएगा और जीतने वाला हरा दिया जाएगा। जो जनता चिल्ला चिल्ला कर यह बता रही होगी कि फलां की सरकार आ रही है। उसके खिलाफ अखबार और गोदी मीडिया के लोग बता रहे होंगे कि ऐसा नहीं ऐसा होने वाला है। जिसकी सूचना का स्रोत नहीं होगा। इसकी सूचना का स्रोत किसी केंद्र से आई हुई सूचना होगी।
-डॉ.लाल रत्नाकर

गुरुवार, 9 अक्टूबर 2025

तेरे जुमले में

तेरे जुमले में 
और मेरे जुमले में। 
फर्क केवल इतना है
कि तुम सत्ता की 
कुर्सी से बोल रहे हो 
और मैं बेरोज़गारों के मंच से ॥
तुम्हारे पीछे 
पूंजीपतियों की फौज है 
देश की अकूत सम्पदा है 
और मेरे लिए 
बेरोजगारों ने चंदा किया है ।
तुम्हारे पास संगोल है
मेरे पास लाठी है।
-डॉ लाल रत्नाकर

गॉडसे अभी मरा नहीं है।

 

गॉडसे अभी मरा नहीं है।
गली गली में 
चाय की दुकानों पर चौराहों पर,
सीना तानकर खड़ा है। 
गांधी के देश के, 
सत्ता में आए लोग,
गोडसे की जय बोल रहे हैं। 
उसकी मूर्तियां लगवा रहे हैं। 
उस पर किताबें लिखवा रहे हैं।
गांधी को अब तो !
सिक्कों से भी हटा रहे हैं। 
नोटों से हटाने की तैयारी कर चुके हैं।
गांधी को लेकर यह कहां जा रहे हैं। 
किसी को नहीं बता रहे हैं ?
गोडसे को कहां-कहां लगाएंगे। 
अभी यह साफ-साफ नहीं बता रहे हैं। 
अभी तो केवल यह बता रहे हैं। 
गोडसे अभी जिंदा है।
उसके लिए बड़े-बड़े मंदिर बना रहे हैं। 
न्यायालय में हुड़दंग मचा रहा है।
अंबेडकर के लोगों को आंख दिख रहा है। 
जूता उठा रहा है। 
किस-किस पर चला रहा है। 
क्या सत्ता में बैठे हुए लोगों को 
दिखाई नहीं दे रहा है। 
दिखाई दे रहा है। 
उन्हें मजा आ रहा है। 
गोदी मीडिया उसे बहुत ही 
अभिमान से दिखा रहा है। 
बुद्ध का ज्ञान! 
बुद्ध का अभियान! 
बुद्ध की शांति। 
बुद्ध की दया, करूणा 
इस सबको 
निर्यात किया जा रहा है। 
विदेशी मंचों से 
गुणगान किया जा रहा है।
यहां पर गुंडो लफंगों को !
गोडसे बनाया जा रहा है।
जो घूम-घूम कर बस्ती बस्ती। 
बलात्कार कर रहा है। 
लिंचिंग कर रहा है। 
बुलडोजर चला रहा है। 
सबको पंगु बना रहा है। 
क्योंकि गॉडसे अभी मरा नहीं है।
गॉडसे अभी जिंदा है।
गॉडसे तब तक नहीं मरेगा।
जब तक मनुस्मृति रहेगा। 
बाबा साहब ने इसीलिए, 
इसे जलाया था!

-डॉ.लाल रत्नाकर

x

इतराने का भी कोई वक्त होता है।


इतराने का भी कोई वक्त होता है। 
मेरा यह सवाल कितना वाजिब है 
मैं नहीं जानता। 
यह विज्ञान का हमला है। 
विज्ञान का कमाल है। 
सामान्य समझ से ज्यादा। 
समझ का कायल है। 
थोड़े दिनों में सामान्य हो जाएगा। 
अभी तो थोड़ा जटिल है। 
देवी देवताओं को। 
मानने वालों के लिए आश्चर्य।
ए आई के युग में वह कितने पीछे हैं। 
अभी भी जूता उठा रहे हैं। 
दिल को आग लगा रहे हैं। 
न्याय से इतना घबरा रहे हैं।
-डॉ लाल रत्नाकर

उसकी हजारों साल की मनोवृत्ति में,

 

उसकी हजारों साल की मनोवृत्ति में,
सिर्फ नफरत और नफरत है।
बंधुत्व की विचार शून्यता है ,
बर्दाश्त करना उसकी खूबी जरूर है।
पर सहज नहीं उसे धकेला है 
उसके लिए मुमकिन नहीं है
समाज को बराबरी के तल पर।
बर्दाश्त करना। 
या विचार करना उसकी बराबरी के लिए 
तभी तो हजारों साल से 
वह नफरत के नासूर दिल में पाला है ।
इस सारे हालात के लिए -
क्या नहीं किया उसने गैर बराबरी के लिए 
बहुजन समाज का नेता ज़िम्मेदार है ।
अन्यथा एक दिन में सब कुछ बदल देगा !
सब कुछ बदल लेगा !

-डॉ.लाल रत्नाकर

रविवार, 5 अक्टूबर 2025

जुल्म तो हारता ही है !


जुल्म तो हारता ही है !
यह बात जुल्मी भी जानता है ! 
लेकिन यह हद ही हो गयी कि 
नफ़रती मानसिकता वाले 
सत्ताधारी पार्टी के लोग 
कितने जालिम अमानवीय भी हैं !
बदले की भावना से ही नहीं बल्कि!
साम्प्रदायिकता की भावना से
उत्तर प्रदेश और सपा के क़द्दावर 
नेता को बर्बरता की हद तक !
प्रताड़ित करने वाली मानसिकता 
से किये गए अत्याचार उत्पीड़न 
का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ा है ।
आज़म साहब ज़िंदादिल इंसान हैं ।
उनकी यह यातना और बदनामी 
इस बर्बर युग की ऐतिहासिक दास्ताँ है ! 


-डॉ लाल रत्नाकर


(नोट : श्री आजमखान साहब समाजवादी पार्टी के लीडर के साथ उत्तर प्रदेश सरकार के कई बार कैबिनेट मंत्री रहे हैं। इन सबसे अलग वह लोकसभा के बेबाक संसद सदस्य रामपुर उप  (सपा)  के रहे हैं। ईमानदार और नेकदिल इतने की आमलोगों में उनकी लोकप्रियता की कोई मिशाल ही नहीं। 
लेकिन मुश्लिम विरोधी मानसिकता की केंद्र और प्रदेश की सरकार ने उस व्यक्ति को तहस नहस करने की सामंती अलोकतांत्रिक नीतियों से वर्वाद करने की कोई योजना बाकी नहीं छोड़ी बस ह्त्या ही नहीं कराई और क्या नहीं किया बुलडोज़र से उनके विश्वविद्यालय लिब्रेरी स्कूल  कालेज घर क्या नहीं तोड़ा उनके लिए यह गीत )

धैर्य की भी इंतेहा होती है।

 
धैर्य की भी इंतेहा होती है। 
तुम्हारी क्रूरता से 
मनुष्यता रोती है।
कहीं धर्म के नाम पर, 
कहीं जाति के नाम पर,
कहीं लिंग के नाम पर, 
कहीं तुम्हारे बहसीपन
के नाम पर,
छल, प्रपंच, चोरी और सीनाजोरी,
और न जाने क्या-क्या, 
जो दिल में रखते हो, 
वह मुंह पर नहीं आता, 
जो मुंह पर आता है 
वह अमल में नहीं आता, 
न जाने क्यों तुम्हें देश का संविधान, 
नहीं भाता ?
आज से नहीं 
संविधान निर्माता के विचार 
तुम्हें रास नहीं आते। 
यही कारण है कि तुम। 
उसे मिटाने में लगे हो। 
जिसे छुपाने में लगे हो। 
रोज-रोज वही निकल के आ रहा है।
अब पूरा देश तुम्हारे खिलाफ 
एकजुट होकर खड़ा हो रहा है। 

-डॉ लाल रत्नाकर

इस गफलत में उस गफलत में


इस गफलत में 
उस गफलत में 
पड़ा रहा दिन रात 
खोद रहा था 
जड़ वह मेरी 
जिसके काले हाथ।
अधिकारों पर हिस्सेदारी,
जीएसटी जैसी।
आयकर की 
अलग विमारी।
कितना करे 
हिसाब।
डूबा हुआ है 
आम आदमी 
अपने 
रोटी दाल में।
मुफ्तखोर 
व्यापारी हो रहा है 
माला माल।
नियम कायदे 
कैद हो गये,
अत्याचारी के हाथ।
बुलडोजर से 
करता है वह
सही ग़लत की बात!
कोर्ट कचहरी से 
लड़ लेता था
जिसके खाली हाथ।
सत्य अहिंसा 
जुमले हैं अब
सत्ता पर हत्यारे हैं जब।
संविधान पर कब्जा है 
मनुवाद का पर्दा है।
कौन हटाए कौन चढ़ाएं।
भक्तों का ही जब  पहरा हो।

-डॉ लाल रत्नाकर

याद स्मृतियों में रहती है

 
याद स्मृतियों में रहती है 
रोज़ रोज़ पूजकर 
अपराध करने से नहीं !
स्मृतियों के इतिहास 
वास्तविक होते हैं ।
मूर्तियों और किताबों में 
झूठ का इस्तेमाल होता है ।
इसलिए इतिहास पुनर्लेखन 
की बात करते हैं ।
जिन्हें केवल अपना
हित दिखता है।
इतिहास तथ्यों पर आधारित होता है।
गढ़ा नहीं जाता
मढ़ा नहीं जाता।

-डॉ लाल रत्नाकर

समय का चक्र इस तरह से चलता है।

 
समय का चक्र इस तरह से चलता है।
जब नकली असली बन जाते हैं।
असली कहीं खो जाते हैं। 
आजादी से लेकर अपने आसपास तक।
हम मर्यादा में आंखें बंद कर लेते हैं। 
अमर्यादित झंडा गाड़ रहा होता है।
बिना किसी शर्म के अपनी भागीदारी बता रहा होता है। 
पूरे इतिहास को झूठा साबित करके। 
अलग इतिहास बन रहा होता है। 
नयी दुनिया, नया देश, 
स्मार्ट शहर?
स्वावलंबी गांव और लाभार्थी लोग ?
इसी प्रयोगशाला की उपज है।
बेरोजगारी भुखमरी कोई एक दिन का इलाज नहीं है। 
यह लाइलाज बीमारी है।
जिसे जुमले से सुलझा रहा होता है।
चंबल के पत्थरों से निकले हुए हथियार। 
संग्रहालयों में रखवा रहा होता है।
उनका यह यशोगान कर रहा होता है।
जिसे इतिहास ने काले पन्नों में छुपा रखा है।
उन स्मृतियों को दिल में दबा रखा है। 
जो हमारे विकास में बाधक थी।
समता समानता और बंधुत्व की दुश्मन थी और हैं। 
मगर अंधीअवाम मुफ्त के नशे में झूम रही है। 
नए इतिहास के झूले में झूम रही है। 
जब शोक मनाने का दिन है।
जश्न मना रही है। 
गाल बजा रही है।

-डॉ लाल रत्नाकर

सवाल यह है कि सवाल पूछें किससे?


सवाल यह है कि 
सवाल पूछें किससे?
उनसे जिन्होंने जवाब रट रखा है।
अन्याय की किताब से।(मनुस्मृति)
जीवन को पत्थर समझ रखा है। 
मन को लूटेरा बना रखा है। 
दिल की जगह गड्ढा खोद रखा है। 
जिसमें कचरा डालकर। 
खाद बना रहा है। 
भविष्य की फसल उगाने का। 
जिसने चोरी के हर हथकंडे।
सिखा है और सिखा रहा है।
पूरी दुनिया को भरमा रहा है ?

-डॉ लाल रत्नाकर