मंगलवार, 17 दिसंबर 2024

यह लूट लूट नहीं है यह संस्कृति है

 

यह लूट
लूट नहीं है 
यह संस्कृति है 
यह भ्रष्टाचार 
भ्रष्टाचार नहीं है 
यह संस्कृति है। 
व्यापार की 
बाजार की 
राजनीतिक 
अत्याचार की 
यह लूट 
लूट नहीं है 
यह संस्कृति है 
व्यापार की। 
यह भ्रष्टाचार 
भ्रष्टाचार नहीं है 
यह संस्कृति है 
व्यापार की। 
यह मन की बात 
मन की बात नहीं है 
यह संस्कृति है 
मित्रता की। 
सत्ता के शीर्ष पर 
बैठकर बैठे रहने की 
संस्कृति है। 
यह लोकतंत्र 
लोकतंत्र नहीं है।
शहंशाह की 
की कारस्तानी है।
यह राजधानी 
देश की 
राजधानी नहीं है
यह अंधी जनता की
राजधानी है।


-डॉ.लाल रत्नाकर


उपाय क्या है यह तो हारेंगे ही नहीं

 

उपाय क्या है 
यह तो हारेंगे ही नहीं 
जनता लाख कुछ कर ले 
विपक्षी जीतेंगे ही नहीं। 
कुछ तो करना होगा, 
उसी से बात करनी होगी 
जो यह सब करने में 
अपनी ताकत लगा रहा है। 
उसे कोई ना कोई तो फंसा रहा है 
क्या जनमत यही होता है।
कि घर का वोट भी नहीं मिलता।
यह भी हो सकता है। 
घरवाले अपने मुनाफे के लिए।
घूस ले लिये हों।
और वोट दे दिये हों।
ऐसा भी तो हो सकता है। 
क्योंकि फला है तो मुमकिन है।
ताली और थाली तो बजाए ही थे।
नोटबंदी पर 
सड़क पर कहां आए थे। 
सड़क पर तो वह आए थे।
जिन्हें आज तक 5 किलो, 
अन्न पर खरीदा जा रहा है।
है न मुश्किल उनका हारना।
उपाय क्या है।


-डॉ लाल रत्नाकर


विचारों की खदान में विचार ही नदारद है।

 


विचारों की खदान में
विचार ही नदारद है।
कुकुरमुत्ते की तरह,
मशरूम पर संवाद जारी है
संवाद के हर स्तर पर
ब्राह्मणवाद हावी है।
ब्राह्मणवाद के प्रतीकों में
तेरे त्रिषूल की पवित्रता
अपवित्र कर रही है
नेतृत्व जिनके अपवित्र हाथों में है।
आमजन आहत हैं राहत की आहट से।
घबराहट है तो एहसाष गायब है।
बहस जिस बात पर हो रही है,
वह बात ही यहां गायब है।
निजता पर आंच ना आए।
यह सच उन्हें कौन बताए।
जहां विचारों की खदान खाली है।
आलम बहुत बवाली है।

-डॉ.लाल रत्नाकर


चित्र बोलते हैं


 चित्र बोलते हैं 
इनकी आवाज सुनना
इनकी आवाज बनना 
इन्हें निरंतर आवाज देते रहना 
जब शौक बन जाए 
तब तब अनेक बंधन 
बांधने की कोशिश करते हैं 
कुछ नये ज्ञानवान के
अंकुश के शब्दबाण
झेलते हुए।
फिर फिर कई बार 
उदास भाव से
जब जब वक्त मिले 
रचने लगता हूं,
वह नहीं समझ पाते
और मैं रुक जाता हूं
तब वक्त निकल जाता है
तो जिनकी आवाज दब जाती है 
और मेरे हाथ रुक जाते हैं। 
इसलिए पेन और कागज 
हमेशा अपनी थैले में रखता हूं 
जीवन दायिनी औषधि की तरह 
हमेशा हर समय हर जगह। 
पर वह इस्तेमाल ना हो, 
तो उस अपराध का दोष 
किस किस पर जाता है।
कौन तय करेगा?


-डॉ लाल रत्नाकर


उन्नति के मार्ग

 



उन्नति के मार्ग 
बाधित करने वाले 
क्या तुम्हें पता है।
तुम कर क्या रहे हो।
राह मुश्किल है सबकी,
आसान करो।
अभिमान करो, 
सम्मान करो।
दुनिया बहुत बड़ी है।
और वह यहीं रहेगी
जैसे अब तक रही है।
पलायन का ना 
इंतजाम करो।
ईमानदारी के 
कुछ काम करो।
नहीं तो अब, 
आराम करो!

-डॉ लाल रत्नाकर

क्या कभी आपने सोचा,

 

क्या कभी आपने सोचा, 
आपकी जिंदगी के बाद क्या बचेगा ?
आपकी सोच और आपके कारनामे! 
कौन नहीं जानता है। 
किस किस को अपने झूठे गौरव गान से। 
कब तक बेवकूफ बनाते रहिएगा। 
यह तो तय है की एक दिन। 
दुनिया के सामने 
आपका सच आ जाएगा। 
आपके खूबसूरत झूठ का  
बदसूरत चेहरा 
सामने आ जाएगा, 
आपके रूपहले नकाब उतर जाएंगे।
और आप भी उसी तरह से 
अग्नि के भेंट चढ़ जाओगे। 
जैसे आमतौर पर चंदन घी 
और हवन सामग्री। 
आपके साथ आपकी दौलत, 
शोहरत, नकाब, इज्जत, मान सम्मान। 
सब धुएं की तरह फैल जाएगा।
लोगों की आंखों में जहर भर जाएगा। 
फिर वह लोग जो भक्त हैं 
अंध भक्त हैं आंख मूंदकर।
आपकी स्मृति में मूर्तियां लगाएं, 
भजन गायें पर सच कहां से लाएंगे। 
क्या कभी आपने सोचा, 
आपकी जिंदगी के बाद क्या बचेगा ?
अखंड पाखंड अंधविश्वास।
और नफरती समाज।

डॉ लाल रत्नाकर



शीर्ष पर बैठे हुए हो ?

 

शीर्ष पर बैठे हुए हो ?
क्या इसका तुमको भान है,
संज्ञान है पद प्रतिष्ठा का
या केवल अपना गुमान है। 
अभिमान है ज्ञान का, 
फिर अज्ञान का क्या मान है
ज्ञान और अज्ञान का 
इतिहास है 
उसको बदलकर बोलना,
जनता के धैर्य को तोलना,
असंतोष फैलाकर, 
आग लगाकर
जब यही अभिप्राय है।
जिनको पता है 
'बंच ऑफ थॉट' का 
वही तुम्हारा प्रतिमान है। 
यह कैसी शान है जो,
सर्वदा!
लोकतंत्र का अपमान है। 
जब संविधान महान है।

-डॉ लाल रत्नाकर

शनिवार, 28 सितंबर 2024

जिंदगी














जिन्दगी जान ले लेती है दिल की उमंग से
हमारे मजहब सोहबत इज्जत और मोहब्बत

सब बेगाने हो जाते हैं वक्त आने जाने के साथ
हमारे अभिमान के आगे भले सब बौने हो जाते हैं

पर हम लौट नहीं सकते अपने अभिमान से आगे
टूट जाते हैं सियासत के दांव पेंच से जज्बे आखिर

आपकी सख्शियत की आग की लौ जल तो रही है
उन्हें पता है उनकी नियत भी बदली हुयी दिख रही है

और स्वाभिमान के आगे वे असहाय खडे दिखते भी हैं
यही कारण है कि वे जीत तो जाते है पर अंदर से नहीं

जो जल रहे होते तो है पर जलते हुए दिखते नहीं और
वे सामने नहीं आते बल्कि पीछे से ही हमलावर होते है

यहीं हम हार जाते है उस दुष्कर्म और उनके दोहरेपन से
अपराध और छल के कौशल से ही सही वो जीत जाते हैं।

-डॉ लाल रत्नाकर

सोमवार, 23 सितंबर 2024

जिसके साथ आपका उठना बैठना है


जरूरी नहीं है 
आप भी उतने ही बुरे हो जाओ 
जिसके साथ आपका 
उठना बैठना है ।
यह भी जरूरी नहीं है कि
जो आप सोचते हो 
वही सही हो 
क्योंकि मुझे लगता है 
जो मैं सोचता हूं 
वह सही नहीं है।
आज के लिए, 
आजकल के लिए 
परिणाम का इंतजार 
गीता में मना किया गया है। 
कर्म पर जोर दिया गया है।
किस तरह का कर्म 
सद्कर्म या दुष्कर्म ?
यह सवाल हमेशा जिंदा रहता है 
उनके मध्य जो सफल दिख रहे हैं, 
असफल होते हुए। 
असफलता की पहचान 
किस तरह से करनी है यह, 
विषय भी उतना ही गूढ़ है।
जितना अच्छे और बुरे का निर्णय। 
सफलता आपके चरण चूम रही है। 
असफल समाज के मस्तक पर। 
तिलक, रक्षा के धागे, जनेऊ।
मिल जाएगा जन-जन तक। 
जिनका मन नहीं मिलता,
सच से रूबरू हुए बिना।
जरूरी नहीं है आप भी 
उतने ही बुरे हो जाओ 
जिसके साथ आपका 
उठना बैठना है.

-डॉ लाल रत्नाकर


जो व्यवस्था आपको लंगड़ा बना दे, पैर काटकर अपाहिज बना दे।


जो व्यवस्था आपको
लंगड़ा बना दे, पैर काटकर
अपाहिज बना दे।
पर काटकर उड़ना रोक दे
भूखे कुत्तों के सामने
बेखौफ छोड़ दे चूसने के लिए
आपको कैसे अच्छी लगती है
जैसे उनको अच्छी लगती है
जिनके पीछे-पीछे आप
अंधभक्त बनकर लगे हुए हो।
कोई तो स्वार्थ होगा
या नि:स्वार्थ लगे हुए हो.
पता तो होगा या नहीं ?
पता है सच और झूठ का
भेद करना भी तो मुश्किल है।
वतन की बात करते हैं।
अपना मन नहीं देखते
अपना तन नहीं देखते
जो खरोचों से भरा पड़ा है,
सिंह के खूंखार पंजों के नहीं
इसी समाज में नफरत और जहर
फैलाने के हजारों हजार मशले
जिन पर न्याय नहीं होता।
- डॉ.लाल रत्नाकर

बुधवार, 11 सितंबर 2024

आवाज में कितना दम होता है


आवाज में 
कितना दम होता है 
यदि वह झूठ नहीं है। 
सच कितनी तेजी से 
देश तक आ रहा है। 
झूठ मंडली में 
कैसी बहस हो रही है।
अनाप-शनाप बक रहे हैं 
संवैधानिक सवालों पर। 
किस तरह के मुंह से।
कोई सुन रहा है क्या? 
सब कह रहे हैं 
बकवास कर रहा है।
आवाज में 
कितना दम होता है ।

-डा.लाल रत्नाकर


शुक्रवार, 6 सितंबर 2024

जिंदगी आमतौर पर मूल्यों पर खड़ी होनी चाहिए।



जिंदगी आमतौर पर 
मूल्यों पर खड़ी होनी चाहिए।
जिसका समय समय पर
मूल्यांकन हो सके।
लेकिन इस मुल्क में 
जिंदगी के मायने अलग-अलग हैं। 
बचपन, जवानी और बुढ़ापा।
बचपन जिन परिस्थितियों में 
गुजरता है। 
वहां सरकारी स्कूल होते हैं, 
जहां का टीचर जानता है 
बच्चों का परिवेश, धर्म और जाति। 
वहीं से शुरू होता है 
नफरतों का बीज बो देता है 
वह उस होनहार की जिंदगी में।
जिसे ढोता है पूरी जिंदगी 
दुनिया की चकाचौंध में।
वह सच नहीं देख पाता
क्या यह कह सकते हैं 
उसे सच देखने ही नहीं देता। 
उसका पाठ्यक्रम ?
जिसमें संजोया गया है
जुमलेबाजी का भंडार,
गहरी काली झील में। 
वहां से निकलता है 
और वह टूट पड़ता है। 
सौंदर्य के कच्चे पेड़ों पर। 
वह नहीं जानता यह पेड़ 
इतने जहरीले फल देते हैं।
जिसे खाकर खो देता है 
वह अपना होशो हवास।
हमने देखा है ऐसे ऐसे, 
घटते हुए दिवास्वप्न।
जो सच नहीं थे। 
और आगे भी सच होने के आसार। 
नजर नहीं आ रहे हैं। 
तभी तो दुनिया के सौंदर्य में। 
वह सौंदर्य नजर नहीं आ रहे हैं। 
जो हमारे पास 90/95 प्रतिशत.
देश बनाने वाले लोग।
अपने बच्चों में नहीं देख पा रहे हैं। 
उनका भविष्य अंधकार में 
डूबता जा रहा है.....। 
या डुबोया जा रहा है।
पाखंड, अंधविश्वास और चमत्कार में। 
हिंदू, मुसलमान, सिख और इसाई होने में। 
हम कहां खड़े हैं। 

-डॉ.लाल रत्नाकर

मंगलवार, 3 सितंबर 2024

विकास का विनाश से


विकास का विनाश से
बहुत बड़ा रिश्ता है 
मुफ्तखोरी का ताना-बाना 
बनाता मवाली है।
जब टेट खाली है, 
शराबी सवाली है,
आदत से मजबूर और
भेजे से भी खाली है।
बात बेहतर हो यह ख्वाब से
तय नहीं होता होता है
कौशल से और हौसले से
कागजों में हेरा फेरी 
खूब कर लो आज पर
कल जवाब देह बनोगे
तब तक तय नहीं होता।
बेईमान कौन है।
ऐसे कितने लाभार्थी हैं।
जो भक्ति में पेय के।
कुछ भी करते है।
रात दिन मरते है।
भ्रम में पड़े पड़े।
वह जो कुछ भी करते हैं।
भला उससे क्या होता है।

-डॉ लाल रत्नाकर

नजर अंदाज मत करना

 


नजर अंदाज मत करना 
जमीं जन्नत नहीं होती,
सबर करना खबर करना, 
जिंदगी अमर नहीं होती,
निति नियति सब यहीं 
रह जाती है मौत आने पर।
लेकर यहां से क्या जाओगे, 
सोचा तुमने, समझा तुमने। 
ठगने की आदत अद्यतन।
प्यार और त्याग से ऊपर नहीं होती।
त्याग से अनुराग से 
सदियों सदियों तक पहचान बनती है, 
देवता बनने से मनुष्यता नहीं बचती।
उसे भगवान मत समझना।
मनुष्य बन जाने से देवत्व आ जाता है।
नजर अंदाज मत करना। 
सच को सच की तरह समझना। 

-डॉ लाल रत्नाकर

शायद पहली बार




शायद पहली बार 
ऐसा नहीं हुआ है कि 
किसी काबिल आदमी को 
नाकाबिल से पराजित 
करा दिया गया है।
या उसका चयन नहीं हुआ है
एकलव्य की बात छोड़ भी दें 
तो हजारों लाखों नौजवानों के
साथ यही हुआ है।
यह क्यों होता है इस पर 
लिख डालिए महाग्रंथ।
फर्क क्या पड़ता है 
उन पर जो यह करते हैं 
फर्क हम सब पर पड़ता है 
क्योंकि हम सिपाही की लाइन में,
अपने सिपाहसालारों को 
हजारों लाखों भेंट करके 
भर्ती पाते रहे हैं।
जज बनने से घबराते रहे हैं, 
यदि लड़ाई वहां से शुरू होती 
तो आज अन्याय का रास्ता 
इतना आसान न होता।
अपनी अपनी बर्बादियों पर 
ग्रंथ लिखने की जरूरत ना पड़ती। 
यह भी कोई लिखने की चीज होती है।
लिख करके बाबा साहब बनने की, 
कला और थी 
जो आज समझ में नहीं आती। 
लिखना ही था तो 
क्रांति का इतिहास लिखते हैं। 
बराबरी के विकास के लिए 
कोई उपाय लिखते।

-डॉ लाल रत्नाकर

शनिवार, 31 अगस्त 2024

जो हमारे बीच के बौने लोग


तुम्हें देखा तो यह याद आया 
विकास कहां गया है 
विनाश को छोड़कर ।
तुम्हारी नीति तुम्हारी रिति
मेरे लिए कोई मायने नहीं रखती
शिवा नफरत के नंगे नाच के।

जो हमारे बीच के बौने लोग 
बहुत बेशर्मी से जारी रखे हुए 
दिन प्रतिदिन उसी में उलझे हुए हैं।
उनको बचाने की भी 
हम प्रार्थना करते हैं।
प्रार्थना करते हैं देश बचाने का 
संविधान को सुरक्षित रखने का। 
पाखंड और अंधविश्वास हटाने का 
चमत्कार से आपको कैद करने का 
विज्ञान को आगे बढ़ने का। 

आईए मेरे साथ 
मेरे मिशन को आगे बढ़ाने में 
अपने हाथों को शामिल करिए। 
सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के खिलाफ। 
मजबूती से खड़े होईए।
समाज को वैचारिक 
और वैज्ञानिक सोच का बनाने के लिए।
खड़े होईए मजबूती से।

-डॉ लाल रत्नाकर

जीना भी क्या जीना


जीना भी क्या जीना 
जिसका कोई मकसद न हो! 
(-सु.स.)

ऐसा भी क्या मकसद !
जिसमें ईमान ना हो।
हमने देखा है बेईमानों की 
सफेद पोश फौज ?
जो किसी को भी 
धोखा दे सकते हैं। 
आपने भी देखा है। 
बहुत सारे तो हमारे 
आसपास भटकते रहते हैं?
और कमेंट भी करते हैं 
वह भी जय बोलते हैं 
बलिराजा की !
हिंदू मुस्लिम के झगड़ों 
को गढ़ते रहते हैं रात दिन 
और फिराक में रहते हैं 
ठगने के, रहकर नेता के 
इर्द-गिर्द। 
इनसे तो अच्छे गिद्ध हैं,
जो मांस नोचते रहते हैं,
यह वह है जो,
जिंदा को नहीं छोड़ते हैं।
गढ़ते हैं कानून ?
कानून को बदलकर। 
अपने पक्ष में कर करके! 
भरते हैं हुंकार। 
दो चार !
अपने जैसों को गढ़कर।
ऐसा भी क्या मकसद है!
जिसमें ईमान न हो ।

-डॉ लाल रत्नाकर

मंगलवार, 13 अगस्त 2024

जिनकी आंखें हैं



 जिनकी आंखें हैं 
उन्हें कैसे दिखाई नहीं देता 
जो बिना आंखों के देख लेते हैं 
दोनों में कितना सच होता है 
सच देखने के लिए 
जरूरी नहीं आंखें हो 
सूरदास ने यह साबित किया है
सच तक पहुंचाने के लिए 
बहुत सारा त्याग और तपस्या 
अज्ञान और अभिमान का 
परित्याग करना।
जरूरी है सच के लिए होना 
और सच के करीब होना
सच न सोना है ना चांदी 
न किसी तरह का रत्न है।
सच-सच है 
जो ज्ञान और अज्ञान को
अलग करता है। 
मन को शांत और दुश्मन को 
अशांत करता है।

-डॉ.लाल रत्नाकर

सोमवार, 12 अगस्त 2024

लाइनें पड़ी हों या खड़ी हो



लाइनें पड़ी हों या खड़ी हो
काम तो वही करती हैं, 
अभिव्यक्ति में भले असुविधा हो 
लेकिन मन से तो जोडती ही हैं 
एहसास को तोलती तो है 
लाइनें पड़ी हों भले ही खड़ी हो।
समय की बात बोलती हैं।
लाइन राजनीति में, 
भ्रष्टाचार में, दलाली में,
कितनी कारगर होती हैं। 
जब वह एक दूसरे की 
मददगार होती है।
लाइनें पड़ी हों या खड़ी हो
काम तो वही करती हैं।

-डॉ लाल रत्नाकर

रविवार, 26 मई 2024

तुम्हारे राज में



 तुम्हारे राज में 
तुम्हारे काज में 
लोकतंत्र नहीं दिखता 
स्वतंत्रता के विचार 
हमेशा से नदारद है!
झूठ और जुमलों का 
ही राज तुम्हारा है. 
या भ्रष्टाचार बढ़ाने का 
कामकाज तुम्हारा है। 
जनता को लाभार्थी 
कह कहकर सचमुच 
भीखमंगा बनाना है।
किसने कहा है तुम्हें 
तुम देश की संपत्ति को 
औने-पौने अपने मित्रों को
सौंप देना ही विकास तेरा है।
बड़े-बड़े भ्रष्टाचार करके 
मित्रों का साम्राज्य खड़ा करना 
देश को अपने चंगुल में रखना
तुम्हारे राज की खूबी है। 
यह सब अंधो को क्यों 
समझ में नहीं आता।
वह कैसे भाग्य विधाता है। 
जो तुम्हे जुमले और 
अन्धविश्वास में फसाता है। 
-डा.लाल रत्नाकर